पांडु का जन्म, विवाह और पांडव जन्म कथा

Paandu ka Janm, Vivaah aur Paandav Janm Hindi me


पाण्डु का जन्म , कुंती और माद्री से विवाह। पांडव जन्म कथा  


पाण्डु की जन्म कथा - पाण्डु की माता का नाम अंबालिका और पिता का नाम व्यास जी था। पाण्डु तीन भाई थे, सबसे बड़े धृतराष्ट्र ,उसके बाद पाण्डु और सबसे छोटे विदुर। पुराणों के अनुसार पाण्डु की जन्म की कहानी इस प्रकार हैं।  


धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर का जन्म कथा 

शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए,  चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद और विचित्रवीर्य के अल्प आयु में ही उनके पिता शांतनु का स्वर्गवास हो गया था। शांतनु के स्वर्गवास के बाद चित्रांगद और विचित्रवीर्य का लालन पोषण देवव्रत (भीष्म) ने किया था। चित्रांगद के बड़े होने पर उसका राज्य अभिषेक भीष्म के द्वारा किया गया और उसको हस्तिनापुर का राजा बना दिया। परन्तु कुछ समय पश्चात चित्रांगद की मृत्यु हो गयी, उनके के मृत्यु उपरांत भीष्म ने चित्रांगद के छोटे भाई विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजा बना दिया।


Paandu Ka Birth, Vivaah aur Pandav Birth in Hindi



समय बीतता गया और भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिंता सताने लगी, कोई भी राजा अपनी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य के साथ नहीं करना चाहता था उसका एक जो सबसे बड़ा कारन था की विचित्रवीर्य हर समय मदिरा के नसे में ही रहते थे। 


भीष्म को समाचार मिला की काशी नरेश अपनी तीन पुत्रियों को स्वम्बर करने वाले हैं, भीष्म उस स्वम्बर में जाकर अकेले ही सारे राजाओ को हरा कर काशी नरेश की तीनो बेटियों को हस्तिनापुर लेकर आ गए।


काशी नरेश  की सबसे बड़ी पुत्री अम्बा, ने भीष्म से कहा की वह राजा शाल्व को प्रेम करती है, और उन्ही के साथ शादी करुँगी, यदि मेरी शादी और किसी पुरुष के साथ होगी तो मैं आत्महत्या कर लुंगी । भीष्म ने यह सुन कर उसे राजा शाल्व के पास भिजवा  दिया और बाकि दोनों अम्बिका और अम्बालिका का विवाह हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।


विचित्रवीर्य की कोई सन्तान नहीं हुई और विवाह के उपरांत कुछ समय बाद क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु हो गयी । उनकी मृत्यु होने के बाद उनकी माता सत्यवती बहुत ही चिंतित रहने लगी और उन्हें इस बात का भय सताने लगा की इतने बड़े साम्रज्य का क्या होगा। 


सत्यवती को अपने कुल का नाश दिखने लगा, एक दिन सत्यवती भीष्म के पास जाकर कहती हैं, तुम विचित्रवीर्य की रानियों अम्बिका और अम्बालिका के साथ पुत्र उत्पन्न करो और इस कुल को नाश होने से बचा लो। परन्तु भीष्म ने सत्यवती से कहा हे माता मुझे क्षमा करे मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं आपके सामने ही आजीवन ब्रम्हचर्य की प्रतिज्ञा ली थी जिसे मैं भंग नहीं कर सकता। 


भीष्म से ऐसा वचन सुनकर सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। अचानक उन्हें अपने सबसे पहले जन्में पुत्र वेदव्यास की याद आयी। और उन्हें बुलावा भेजा, माता की आज्ञा पाकर वेदव्यास हस्तिनापुर आ गए।  सत्यवती ने उन्हें देख कर कहा हे पुत्र तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः वंश का नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो। अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए, बोले माता आप उन दोनों रानियों से कह दें  कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करते रहें तभी उनको गर्भ धारण होगा। 



एक वर्ष बाद उन्होंने अपनी माता से कहा कि वे दोनों रानीयों को एक-एक कर उनके पास भेजें और उन्हे देखकर जो जिस भाव में रहेगा उसको वैसा ही पुत्र प्राप्त होगा। पहले बड़ी रानी अंबिका कक्ष में गईं लेकिन व्यासजी के भयानक रूप को देखकर डर गई और भय के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं। इसलिए उन्हें जो पुत्र उत्पन हुआ वह जन्मान्ध था। जिसका नाम धृतराष्ट्र पड़ा उसके बाद छोटी रानी अम्बालिका कक्ष में गईं  उनको भी एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम पाण्डु था। दोनों राजकुमारियों के बाद एक दासी पर भी महर्षि वेदव्यास जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर एक पुत्र को जन्म दिया था। उस के संतान के रूप में विदुर का जन्म हुआ था। 


इन तीनो राजकुमार का पालने की जिम्मेदारी भीष्म ने स्वयं ली और जब तीनो राज कुमार थोड़ा से बड़े हुए तब भीष्म ने इन्हे गुरुकुल भेज दिया शिक्षा ग्रहण करने के लिए। गुरुकुल में विद्या अर्जित करते हुए धृतराष्ट्र बल विद्या में श्रेष्ठ हुए, पांडु धनुर्विद्या में श्रेष्ठ हुए, और विदुर धर्म और नीति में पारंगत हो गए। जब तीनो राजकुमार शिक्षा ग्रहण कर के राज महल हस्तिनापुर वापस आये तो भीष्म ने पाण्डु को हस्तिनापुर के राज गद्दी पर बैठा दिया क्योंकि धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे। और विधुर एक दासी पुत्र थे इसलिए उन्हें राजा नहीं बनाया जा सकता था।

पाण्डु का विवाह -  कुन्ती और माद्री


कुंती का विवाह किसके साथ हुआ था ?


महाराज पांडु के दो विवाह हुए थे।  उनका प्रथम विवाह कुंती भोज राज्य की पुत्री  कुंती के साथ और दूसरा विवाह महाराज शल्य की बहन माद्री से हुआ था। कुंती महाराज भोज  द्वारा गोद ली गयी कन्या थी, राजकुमारी कुंती बहुत ही गुणी कन्या थी। एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज भोज के राज महल आये हुए थे, तो उस समय कुंती ने उनकी बहुत सेवा की थी, और इस कारण महर्षि दुर्वासा प्रसन्न होकर कुंती को वरदान स्वरुप एक मन्त्र दिया, जिसके अनुसार वे जिस भी देवता का नाम लेकर उस मन्त्र का उच्चारण करेंगी, उस देवता के गुणों वाला पुत्र उन्हें प्राप्त होगा। 


माद्री का विवाह किसके साथ हुआ था ?


पांडु ने महाराज पद धारण करने के बाद अपने राज्य के विस्तार के लिए अनेको युद्ध लड़ें और विजय भी प्राप्त की और अपने राज्य का विस्तार बहुत दूर तक कर लिए। एक बार वे  युद्ध करने के उद्देस्य से मद्र राज्य जाने वाले थे, जहाँ एक विशाल सेना युद्ध के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।  तब महाराज पांडु ने देखा कि एक रथ बहुत तेज गति से दौड़ रहा था जब पांडु ने उस रथ को देखा तो उस पर  महाराज शल्य थे तब उन्होंने महाराज शल्य से इसका कारण पूछा, तब उन्होंने बताया कि उनका रथ उनकी बहन माद्री के द्वारा चलाया जा रहा हैं, इसीलिए यह रथ हवा की गति के समान चल रहा हैं,  तब महाराज पांडु ने माद्री के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने स्वविकार्य कर लिया और इस प्रकार महाराज पांडु का दूसरा विवाह मद्र राज्य के महाराज की पुत्री माद्री से हो गया। 

पांडव का जन्म कैसे हुआ?


एक दिन राजा पाण्डु अपनी पत्नियों - कुन्ती एवं माद्री के साथ जंगल में आखेट के लिए गए, कुछ आगे चलने पर महाराज को दूर से एक हिरन दिखाई देता हैं, जिसे देख वे उस पर अपनी तीव्र गति वाला बाण छोड़ देते हैं, वह बाण सीधे जाकर उस हिरन को लग जाता हैं।  वह हिरन उस समय अपने साथी के साथ मैथुनरत में लीन था। अगले ही क्षड़ उस हिरन से एक ऋषि मुनि प्रगट हुए और उन्होंने राजा पाण्डु को श्राप दिया जिस अवस्था में तुम इसे मारा हैं, उसी अवस्था में तुम्हारी भी मृत्यु होगी। 


उन ऋषि मुनि की बात सुनकर राजा पाण्डु को बहुत चिंता होने लगी और महाराज इससे बहुत परेशान रहने लगे।  उनको अब यह भय सताने लगा, क्या वो अब पुत्र विहीन ही रहेंगे, जब यह बात कुंती को पता चली तो उन्होंने महाराजा पाण्डु से कहा आप चिंता न करे मुझे दुर्वासा ऋषि का वरदान प्राप्त हैं, जिसके अनुसार वे जिस भी देवता का नाम लेकर उस मन्त्र का उच्चारण करेंगी, उस देवता के गुणों वाला पुत्र उन्हें प्राप्त होगा।  कुंती के मुख से यह बात सुनकर पाण्डु बहुत खुश हुए और कुंती से कहा की तुम किसी देवता का आह्वान करो। 



कुंती ने सबसे पहले धर्म के देवता को आह्वान किया जिससे पहले पुत्र के रूप में उन्हें युधिष्ठिर मिले। पहली संतान पाकर वे दोनों बहुत ही खुश हुए। कुंती ने पुनः दो बार देवताओं का आह्वान किया इस बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव का आह्वान किया, वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन पुत्र के रूप में पाण्डु और कुंती को प्राप्त हुए।



पाण्डु एवं कुंती को अब  तीन संतानें थी, और वे दोनों बहुत खुश रहने लगे लेकिन पाण्डु की दूसरी पत्नी अभी भी नि:संतान ही थी। इसलिए पाण्डु ने कुंती को आज्ञा दिया की वे उस मंत्र की दीक्षा माद्री को भी दे।


इस मंत्र का प्रयोग कर माद्री ने अश्वनी कुमारों का आह्वान किया, जिनसे उसे नकुल तथा सहदेव नामक दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। अब राजा पाण्डु का परिवार पूर्ण था, जिसे देख वे हंसी-खुशी से अपना जीवन बिताने लगे, और यही आगे चलकर पांडव कहलाये। 


पाण्डु की मौत कैसे हुई 


वर्षाऋतु का समय था, एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। उस दौरान आसपास का वातावरण अत्यन्त रमणीक था, उस समय पाण्डु अपने काम वेग पर नियंत्रण न रख सके और माद्री के साथ सहवास किया। श्राप के परिणाम स्वरूप राजा पाण्डु की वही मृत्यु हो गयी जिसे माद्री सहन नहीं कर पायी और वो भी महाराजा के साथ सती हो गयी, उनके दोनों बच्चो का लालन पोषण कुंती ने अपने बच्चो की तरह किया। 


पांडु की दूसरी पत्नी का नाम क्या था?

हस्तिनापुर के राजा पाण्डु की दो शादी हुई थी, पहली पत्नी का नाम कुंती और दूसरी पत्नी का नाम माद्री था। 

राजा पांडु की कितनी रानियां थीं?

हस्तिनापुर के राजा पाण्डु की दो रानियां थीं, पहली का नाम कुंती और  का नाम माद्री था। 

पांडु की मृत्यु के बाद राजा कौन बना?

पाण्डु की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र को बनाया गया। 



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