अभिमन्यु जन्म - चक्रव्यूह और अभिमन्यु वध


महाभारत कथा - अभिमन्यु जन्म और वध - चक्रव्यूह तोड़ना 


अभिमन्यु जन्म , माता - पिता और  विवाह

अभिमन्यु हिंदुओं की पौराणिक कथा महाभारत के एक बहादुर योध्या थे वे एक साहसीतेजस्वी योद्धा और अपने पिता के समानमहान धनुर्धारी थे। अभिमन्यु भगवान कृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा और के अर्जुन पुत्र हैं। (उन्हें चंद्र देवता का पुत्र भी माना जाता है। धारणा है कि समस्त देवताओ ने अपने पुत्रों को अवतार रूप में धरती पर भेजा था परंतु चंद्रदेव ने कहा कि वे अपने पुत्र का वियोग सहन नही कर सकते अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए।)

पौराणिक कथा महाभारत के कथा के अनुसार  अभिमन्यु ने अपनी माता की कोख में रहते ही अर्जुन के मुख से चक्रव्यूह भेदने  का रहस्य जान लिया था। पर सुभद्रा के बीच में ही निद्रामग्न होने से वे व्यूह से बाहर आने की विधि नहीं सुन पाये थे।

अभिमन्यु का बचपन अपनी ननिहाल द्वारका में ही बीता अभिमन्यु को शास्त्र की विद्या श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और उनके महान योद्धा पिता अर्जुन द्वारा प्रशिक्षित किया गया था अभिमन्यु का विवाह राजा विराट की बेटी उत्तरा से हुई थी विराट मत्स्य राज्य के राजा थे। अभिमन्यु और उत्तरा के एक पुत्र परीक्षित था जिसका जन्म अभिमन्यु के मृत्योपरांत हुआ, कुरुवंश के एकमात्र जीवित सदस्य पुरुष थे जिन्होंने इस कुल को आगे बढ़ाया । 

अभिमन्यु का चक्रव्यू तोड़ना

अभिमन्यु ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था महाभारत युद्ध के 13 वें दिन, कौरव पांडवों को चक्रव्यूह के रूप में जाना जाता है। अर्जुन के अनुपस्थित में कौरव ने एक चक्रव्यू की रचना की जिसे अर्जुन के सिवा कोई और योध्या तोड़ नहीं सकता था| जब महाराज युधिष्ठिर को इस बात का पता चला तो वह बहुत ही निराश हुए उनको निराश - दु:खी देखकर अभिमन्यु उनके पास गए और बोले महाराज आप चिंता करे इस चक्रव्यू को मैं तोडूंगा 
 
महाभारत कथा - अभिमन्यु जन्म और वध - चक्रव्यूह तोड़ना
 images third part 

युधिस्ठिर ने कहा पुत्र मुझे तुम्हारे साहस और बीरता पर पूरा विस्वास हैं। अभी तुम बहुत छोटे हो और यह चक्रव्यू तोड़ना कोई आसान काम नहीं हैं।  लेकिन अभिमन्यु ने बोला महाराज मैं इस चक्रव्यू को तोड़ने की सारी विद्याये जानता हूँ तब युधिस्ठिर ने अभिमन्यु से पूछा  ये विद्याये तुमने कैसे और किससे सीखी हैं। तब सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने कहा  हे महाराज मैं यह कला अपने पिता श्री से सीखी हैं। बात उस समयकी है,जब मैं अपनी माता के गर्भ में पल रहा था एक बार मेरी माता जी को निद्रा नहीं रही थी तब पिताजी उनका मन बहलाने के उद्धेस्य से उन्हें चक्रव्यूह-भेदन की कला बतलाने लगे| उन्होंने चक्रव्यूह के : द्वार तोड़ने तक की कला माता जी को बतायी थी, किंतु आगे माताजी सुभद्रा को निद्रा गयी और पिताजी ने सुनाना बन्द कर दिया| अत: मैं चक्रव्यूह में प्रवेश करके उसके : द्वार आसानी से तोड़ सकता हूँ, किंतु सातवाँ द्वार तोड़कर निकलने की विद्या मुझे नहीं आती|' इस पर भीमसेन ने कहा  हे युवराज अभिमन्यु तुम चिंता मत करो चक्रव्यूह का सातवाँ द्वार तो मैं अपनी गदा से ही तोड़ दूँगा|

अभिमन्यु का वध कैसे हुआ और किसने की ?

अगले  दिन प्रात:काल युद्ध आरम्भ हुआ| चक्रव्यूह के मुख्य द्वार का रक्षक जयद्रथ था| पुराणों के अनुसार   जयद्रथ ने अर्जुन के अतिरिक्त शेष पाण्डवों को हराने का भगवान् शंकर से वरदान प्राप्त किया था| अभिमन्यु ने अपनी बाण-वर्षा और कुशल रणनीति से चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश कर गए किन्तु जयद्रथ भगवान् शंकर के वरदान से भीमसेन आदि अन्य योद्धाओं को रोकने में सफल हो गया और कोई भी योद्धा अभिमन्यु के साथ चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश नहीं कर पाया
 
महाभारत कथा - अभिमन्यु जन्म और वध - चक्रव्यूह तोड़ना
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अभिमन्यु ने अपने रथपर बैठकर अकेले ही सारे कौरवो के उपर संहार करते रहे, अपनी शक्ति से शत्रुओं को व्याकुल कर दिया| कौरव सेना के घोड़े, हाथी, और  सैनिक एक एक कर मरने लगे | चारों ओर हाहाकार मच गया| कौरवो के सभी  महारथी अभिमन्यु के हाथों बार-बार परास्त हुए| उस समय उन्हें रोकने का साहस किसी भी कौरवो योद्ध्या के पास नहीं था| अन्त में कर्ण ने एक साथ :महारथियों ने अभिमन्यु पर अन्याय पूर्वक (अधर्म युद्ध ) आक्रमण किया| उन लोगों ने अभिमन्यु के रथ के घोड़ों और सारथि को भी मार दिया.

अभिमन्यु के रथ को छिन्न-भिन्न कर दिया तथा धनुष भी काट दिया| अभिमन्यु निहत्था हो चुके थे फिर अभिमन्यु ने अपने रथ का पहिया उठाकर ही शत्रुओं को मारना शुरू कर दिया| उसी समय दु:शासन के पुत्र ने पीछे से अभिमन्यु के सिर पर गदा का प्रहार किया, जिससे महाभारत का यह अद्भुत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुआ|

अर्जुन की प्रतिज्ञा और जयद्रथ का वध किसने किया ?

अभिमन्यु पर किए गए घृणित कृत्यों की खबर उसके पिता अर्जुन को उस दिन शाम तक पहुंची, तभी अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्त के समय जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा ले लिया ,और ऐसा करने पर आत्मदाह करके तुरंत आत्महत्या कर लेते हैं।


कौरव सेना अगले दिन जयद्रथ को अर्जुन से दूर रखने का प्रयास करता है। अर्जुन कौरव सेना के उपर टूट पङते हैं और एक ही दिन में एक लाख से अधिक सैनिकों और योद्धाओं को मार डालता है। किन्तु अभी भी जयद्रथ  उनसे बहुत दूर था वह उनके पास पहुंच ही नहीं पा रहे थे क्योंकि कौरवो ने एक चक्र्व्यू  के अंदर जयद्रथ को घेर रक्खा था। अर्जुन बहुत निराश हो जाते है क्योंकि उन्हें पता चलता है कि शायद अब वह  जयद्रथ का वध नहीं कर पाएंगे। सर्वशक्तिमान और उनके सारथि कृष्ण को जब यह आभाष होता हैं तो वो अपनी शक्तियों का उपयोग कर के कुछ समय के लिए  सूर्य को अस्त को अस्त कर देते हैं। 


कौरव और पांडव समान रूप से मान लेते हैं कि अब सूर्य अस्त हो चुका है और नियम के अनुसार युद्ध रुक जाता है। दोनों पक्ष अर्जुन को आत्मग्लानि करते हुए देखते हैं। अर्जुन की मृत्यु को देखने की अपनी जल्दबाजी में, जयद्रथ भी अर्जुन के सामने आता है। कृष्ण उस अवसर को देखते हैं और सूरज के उपर से अपनी शक्तिया हटा लेते हैं जिससे की सूर्य फिर से निकलता है। इससे पहले कि कौरव कुछ कर पाते, कृष्ण ने अर्जुन से कहा  अपना गांडिवा धनुष उठाओ और जयद्रथ का वध करके अपना प्रतिज्ञा पूरा करो। उसी समय अर्जुन के अशांत बाण जयद्रथ का वध कर देते हैं, और सूर्यास्त के के पहले जयद्रथ को मारने की उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाती है.



पुराणों के अनुसार जयद्रथ को अपने पिता से वरदान मिला था कि जो कोई भी जयद्रथ का सिर पृथ्वी पर गिराएगा, उसकी भी तुरंत मृत्यु हो जाएगी। इसलिए भगवान कृष्ण चाहते थे कि जयद्रथ का वध अर्जुन इस प्रकार करे की वह दोष अर्जुन के ऊपर लगे तब देवकीनन्दन अर्जुन को इसारा करते हैं की जयद्रथ का सर इस प्रकार उसके धड़ से अलग करे जिससे की उसका सिर सीधे उसके पिता की गोद में गिर जाता है जो एक पेड़ के नीचे बैठा था। उनके पिता पुत्र का सिर देख कर हैरान और उठ खड़े हुए, जिससे जयद्रथ का सिर पृथ्वी पर गिर गया। इस प्रकार उसके पिता कि भी तुरंत मृत्यु हो जाती  है।

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