शनि देव का इतिहास और जन्म कथा


शनि देव का इतिहास और जन्म कथा
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शनिदेव की जन्मकथा

एक कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के यज्ञ से हुआ था शनिदेव के पिता सूर्यदेव और माता का नाम छाया था । सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जब शनिदेव छाया के गर्भ में पल रहे थे तो उस समय सूर्यदेवता का तेज छाया के गर्भ पर पड़ा जिसका तेज छाया का गर्भ सहन ना कर सका। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो वे बहुत काले थे काला रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। गर्भ में रहते सूर्यदेव की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर न सुधरा आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।

शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी क्यों है?


पुराणों में वैसे तो शनि के संबंध में कई विरोधाभासिक कथाएं मिलती है। शनिदेव का  चित्ररथ की कन्या से विवाह हुआ। शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी लेकिन शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतना लीन रहते कि अपनी पत्नी को उन्होंनें जैसे भुला ही दिया था । एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंचीं, लेकिन शनि देव हमेशा कि तरह प्रभु की भक्ति में लीन थे। वे प्रतीक्षा कर के थक गई और उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। और वे बहुत ही क्रोधित हुई और आवेश में आकर उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी उसका नष्ट हो जायेगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने की कोशिश की और  बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप दे देने के बाद उसका कोई विकल्प नहीं था।  तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।


शनिदेव का वाहन 


शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं


शनिदेव से क्यों कुपित हुआ रावण तथा हनुमान जी को उनकी रक्षा के लिए क्यों पहल करनी पड़ी


एक धार्मिक पौराणिक कथा है। रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था। एक बार सभी देवों को हराकर उसने सभी नौ ग्रहों को अपने अधिकार में लिया लिया। रावण चाहता था की उसका पुत्र दीर्घायु हो और कोई देवी देवता उसके प्राण न ले सके। इसलिए जब रावण की पत्नी मंदोदरी गर्भ से थी तब रावण ने इच्छा जताई की उसका होने वाला पुत्र ऐसे ग्रह नक्षत्रों में पैदा हो जिससे कि वह महा-पराक्रमी, कुशल योद्धा और तेजस्वी बनें।



रावण ने सभी ग्रहो को मेघनाथ के जन्म के समय शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया। रावण के डर से सारे ग्रहो रावण की इच्छा अनुसार  शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में चले गए लेकिन शनि देव रावण से जरा भी नहीं डरे।  रावण को यह मालूम था की शनि देव आयु की रक्षा करते हैं। और रावण यह भी जनता था की शनिदेव आसानी से नहीं मानेगे।  शनि देव को रावण ने बलपूर्वक शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया।



उस समय तो शनिदेव मान गए लेकिन जैसे ही मेघनाद का जन्म होने वाला था शनिदेव अपना स्थान बदल दिए जिससे की मेघनाथ की अल्पआयु हो गयी। जब रावण को यह बात पता चली तो वह बहुत ही क्रोधित हुए। शनि अपनी दृष्टि से रावण की शुभ स्थति को खराब कर सकने में सक्षम थे। इसलिए रावण ने अपने सिंघासन के आगे शनिदेव के साथ सभी ग्रहों को जमीन पर मुंह के बल सुला दिए जिससे की उनकी कुदृष्टि लंका पर न पड़े। सारे ग्रहो जमीन के बल होने के कारण कुछ कर सकने में सक्षम नहीं थे। 



जब नारद जी ने सारे ग्रहो  ऐसी स्थिति  देखि तो वे लंका आए और ग्रहों के ऊपर विजय पाने के लिए रावण की प्रशंसा की और कहा अपनी इस जीत को इन ग्रहों को उन्हें दिखाना चाहिए जो कि जमीन के बल लेटे होने के कारण वे देख नहीं सकते।  रावण ने नारद की बात मान लिया और सारे ग्रहों का मुंह आसमान की ओर कर दिया। शनिदेव ने अपनी  कुदृष्टि से लंका को चारो तरफ से देखा उसी समय से लंका का विनाश प्रारम्भ हो गया। रावण को जब यह बात पता चली तो उसने शनिदेव को कारागृह में उल्टा लटका दिया जिससे उनकी कुदृष्टि अब लंका पर ना पड़ सके।   


जब हनुमान  लंका में आये थे और जब उन्होंने पुरे लंका का दहन किया था उसी समय पवनसुत ने शनिदेव के साथ साथ सारे ग्रहो को रावण से मुक्त कराया था जब शनिदेव रावण के कारा गृह से मुक्त हुए थे उन्होंने हनुमान को आर्शीवाद दिया आज के बाद जो भक्त आपकी पूजा करेगा उसको मेरा कुप्रभाव उसके ऊपर नहीं पड़ेगा।


ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को बहुत ही विशेष महत्तव दिया जाता है। शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं। शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है। शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके। शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी पूजा की जाती है।

क्या समानता हैं शनिदेव और पवनसुत के बीच ?


शनि का जन्म अग्नि (आग) से हुआ है जबकि हनुमान का जन्म पवन (हवा) से हुआ हैं
हनुमान और शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं:


पुराणों के अनुसार हनुमान शिव के अवतार माने जाते हैं और शनिवार के दिन पैदा हुए थे।  इसलिए हनुमान की पूजा करने से शिव की कृपा भी प्राप्त होती हैं। हनुमान को संकटमोचन भी कहा जाता हैं।



पुराणों के अनुसार शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं। और सूर्य जी हनुमान के गुरु हैं। एक कथा के अनुसार  शनि की अपने अपने पिता सूर्य से नहीं बनती थी। जबकि हनुमान पर सूर्य की असीम कृपा मानी जाती है।  माना जाता है कि सूर्य ने हनुमान को बहुत सारी शक्तियां देकर महावीर हनुमान बनाया.

शिव की उपासना करने वाले शनि के कोप से हमेशा बचे रहते हैं, हनुमान के भक्तों पर भी शनि की कुदृष्टि कभी नहीं पड़ती।



यदि शनिदेव जी के बारे में दी गई जानकारी में कोई त्रुटि है तो कृपया हमें बताएं, हम इसे सही कर देंगे ।


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