Mahabharata Katha - Biography of Shakuntala and King Dushyant / महाभारत कथा – शकुंतला और राजा दुष्यंत की बायोग्राफी
पुराणों के अनुसार महाभारत की कथा कुरु वंश से शुरू होती है | राजा भरत पुरु वंश के थे जिनके पिता का नाम राजा दुष्यंत और माता का नाम शकुंतला था | आगे चलकर महान प्रतापी सम्राट राजा भरत काजन्म पुरु के वंश में ही हुआ था और राजा भरत के वंश में ही आगे चलकर राजा कुरु हुए जो महाभारत कथा की नीव माने जाते है | कुरु वंश के बारे में जानने से पहले आपकोपुरु वंश के महान सम्राट राजा भरत के जन्म की कहानी आप लोगो को बताना चाहते है जो इस प्रकार है |
पुरु वंश में राजा दुष्यंत नामक एक प्रतापी राजा का जन्म हुआ था जो ही बहुत शूरवीर और प्रजापालक थेएक बार राजा दुष्यंत वन में आखेट के लिए गये हुए थे | जिस वन में वो आखेट खेलने गये थे उसी घने वन में एक महान ऋषि कण्व का भी आश्रम था यह बात उनके सैनिको द्वारा जब उनको पता चली तो उनकेमन में कण्व ऋषि से मिलने की अभिलाषा जागृत हुई और राजा दुष्यंत ऋषि कण्व के दर्शन करने के लिए उनके आश्रम में पहुच गये | जब उन्होंने आश्रम में ऋषि कण्व को आवाज लगायी तो एक सुंदर कन्या आश्रम से आयी और उसने बताया कि ऋषि तो तीर्थ यात्रा पर गये हुए है | राजा दुष्यंत ने जब उस कन्या का उससे उनका परिचय पूछा तो उसने अपना नाम ऋषि पुत्री शकुंतला बताया |
राजा दुष्यंत को ये सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि ऋषि कण्व तो ब्रह्मचारी है तो उनके यंहा शकुंतला काजन्म कैसे हुआ, और उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने पूछ ही लिया तब शकुंतला ने बताया कि मैं अफसरा मेनका और विश्वामित्र की बेटी हूँ, जो मेरे जन्म होते ही वो मुझे जंगल में छोड़ आये तब
एक शकुन्त नाम के पक्षी ने मेरी रक्षा किया था, इसलिए ऋषि कण्व ने मेरा नाम शकुंतला रखा , जब जंगल से गुजरते हुए कण्व ऋषि ने मुझे देखा तो वोमुझे अपने आश्रम में ले आये और पुत्री की तरह मेरा पालन पोषण किया |
शकुंतला की सुन्दरता पर मोहित होकर राजा दुष्यंत ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा जिसे शकुंतला ने भी सहर्ष राजी हो गयी और उन दोनों ने
गंधर्व विवाह कर लिया और वन में ही रहने लग गये |
एक दिन राजा दुष्यंत ने शकुंतला से अपने राज्य को चलने के लिए कहा जिसे सुनकर शकुंतला ने मना कर दिया यह कर की जब तक ऋषि कण्व तीर्थयात्रा से वापस नहीं आ जाते और बिना उनके आज्ञा के मैं आपके साथ राज महल नहीं जा सकती, यह शब्द शकुंतला के मुख से सुनकर राजा दुष्यंत कोबहुत ही खुशी हुई और उन्होने कँहा हे देवी मुझे तो वापस अपने राज महल को जाना होगा क्योंकि मुझे राज पाठ भी देखना हैं, लेकिन जब ऋषि कण्व तीर्थ यात्रा से वापस आ जाये तब आप उनकी आज्ञा लेकर मेरे राजमहलमें आ जाना।
जाते समय राजा ने अपनी प्यार की एक निसानी के रूप में अंगूठी देकर चले गये, कुछ समय पश्चात एक दिन शकुंतला के आश्रम में ऋषि दुर्वासा जी आये और शकुंतला को उनकेआने काजरा भी आभास नहीं हुआ क्योंकि शकुंतला उस समय राजा दुष्यंत के ख्यालो में खोई हुयी थी जिससे ऋषि का उचित आदर और सत्कार नही कर पायी जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को श्राप दे दिया कि वो जिसे भी याद कर रही है वो उसे भूल जाएगा | शकुंतला ने ऋषि दुर्वासा से अपने किये की माफी माँगी जिससे ऋषि का
दिल पिघल गया और उन्होंनेशकुंतला को उपाय में यह बताये की यदि तुम कोई प्रेम की निशानी दिखने पर याददाश्त वापस आने का आशीर्वाद दिया
और वे वंहा से चले गए.
तब तक शकुंतला गर्भवती हो गई थी जब ऋषि कण्व तीर्थ यात्रा से लौटे, तो शकुंतला ने उन्हें सारी कहानी बताई ऋषि ने शकुंतला को अपने पति के पासजाने के लिए कहा क्योंकि वह विवाहित लड़की को पिता के घर में रहने के लिए ठीक नहीं मानते थे शकुंतला यात्रा पर निकल पड़ीं, लेकिन रास्ते में एकझील का पानी पीते समय उनकी अंगूठी तालाब में गिर गई जिसे एक मछली ने निगल लिया।
जब शकुंतला राजा दुष्यंत के महल में पहुंची और ऋषि कण्व के शिष्यों नेउन्हें शकुंतला से मिलवाया, और कहा की यह आपकी पत्नी हैं लेकिन राजा
दुष्यंत ने शकुंतला को अपनी पत्नी मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वह ऋषि के श्राप से पूरी तरह से शकुंतला को भूल चुके थे. राजा दुष्यंत द्वारा शकुंतला केअपमान के कारण आकाश में बिजली चमक उठी और शकुंतला की मां मेनका उन्हें वह से ले जाकर ऋषि कश्यप के आश्रम में छोड़ आयी थी.
दूसरी ओर वह मछली एक मछुआरे के जाल में फस गई, जिसके पेट से वह अंगूठी निकली, मछुआरे ने वह अंगूठी राजा दुष्यंत को दे दी, तब राजा दुष्यंतने शकुंतला के बारे में सब कुछ याद किया महाराज ने तुरंत शकुंतला की तलाश के लिए सैनिकों को भेजा, लेकिन वह नहीं मिली।
एक समय के बाद, राजा दुष्यंत इंद्रदेव के निमंत्रण पर देवताओं के साथ युद्ध करने के लिए इंद्र नगरी अमरावती गए युद्ध में, विजय की जीत के बाद स्वर्ग के रास्ते से लौट लगे तब उन्हें रास्ते में कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर लड़का खेलते देखा वह शकुंतला का ही बीटा था लेकिन यह बात राजा को नहीं पता था. राजा दुष्यंत ने जब उस लड़के को देखा, तब उनके मन में उसके साथ खेलने का दिल किया, जैसेही राजा लड़के को अपनी गोद में लेने के लिए आगे बढे.
उसी समय शकुंतला की सहेली ने उनको ऐसा करने से मन किया सहेली ने राजा से कहा कि अगर उसनेइस लड़के को छुआ, तो वह काला धागा जो उस बच्चे के बांह पर बंधा हैं यह आपको सांप बनकर कर काट लेगा लेकिन राजा ने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और लड़के को अपनी गोद में उठा लिया, लड़के की बांह पर बंधे काले धागे को तोड़ दिया जो उसके पिता की ओर से एक संकेत था जब शकुंतला की सहेली ने शकुंतला को सारी बात बताई, तो वह राजा दुष्यंत के पास गई, राजा दुष्यंत ने भी शकुंतला को पहचानलिया और अपने कार्यों के लिए माफी मांगी और उन दोनों को अपने राज्य में ले आए।
महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने बालक का नाम भरत रखा, जो बाद में
राजसी महान सम्राट बना और भरत के ही नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा
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