राजा परीक्षित के जन्म और कलयुग के आगमन की कथा

राजा परीक्षित के जन्म और कलयुग के आगमन की कथा


राजा परीक्षित की कथा  । राजा परीक्षित कौन थे??


महाभारत काव्य के अनुसार परीक्षित का जन्म पांडवो के कुल में हुआ था जो बहुत बड़े धर्मनिष्ठ राजा थे, राजा परीक्षित के पिता का नाम अभिमन्यु और माता का नाम उत्तरा था। राजा परीक्षित अर्जुन के पौत्र थे। महाभारत युद्ध जितने के बाद कुछ समय तक पांडव ने हस्तिना पुर पर राज किया उसके बाद परीक्षित को हस्तिनापुर का राज पाठ सौप कर पांडव द्रौपदी के साथ वन में तपस्या करने चले गए। राजा परीक्षित प्रजापालक एवं कर्तव्यनिष्ठ राजा थे 



उंन्होने तीन अश्वमेध यज्ञ किये तथा कई धर्मनिष्ठ कार्य किये। महाभारत और पुराणों के अनुसार राजा परीक्षित का विवाह उत्तर की पुत्री की ईरावती था के साथ हुआ था। राजा परीक्षित की पत्नी का नाम माद्रवती और इरावती था।  राजा परीक्षित के पुत्र का नाम जनमेजय था। पुराणो के अनुसार चार युग निर्धारित है जो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलयुग 


महाभारत कथा के अनुसार राजा परीक्षित के राज्यकाल में द्वापर का अंत और कलियुग का आरंभ होना माना जाता है। कलयुग का आगमन कैसे हुआ और उसका प्रभाव कैसे बढ़ा इसकी राजा परीक्षित से जुड़ी हुई कथा कई पुराणों के साथ श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है।


द्वापर का अंत और  कलयुग का आगमन कैसे हुआ?


कलयुग के आगमन और राजा परीक्षित की कथा ।  एक दिन राजा परीक्षित ने जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे उसी जंगल में उनका सामना काल से होता हैं। राजा को यह आभाष होता हैं की कलियुग उनके राज्य में प्रवेश करने की कोशिस करता हैं  यह बात जानकर परीक्षित को कलियुग पर बड़ा क्रोध हुआ और वे उसको वध करने के लिए अश्त्र उठा लेते हैं।  


कलयुग यह देख कर अत्यंत भयभीत हो जाता हैं और वह राजा के समक्ष गिड़गिड़ाने लगता हैं इस पर राजा को उसके ऊपर दया जाता हैं और कलयुग को जीवन दान दे देते हैं। उसके बाद कलयुग उनसे आग्रह करता हैं की यदि आप मुझे अपने राज्य में नहीं प्रवेश करने दे रहे हो तो मैं कहा निवास करूँगा। इस पर राजा परीक्षित ने कलयुग को पांच जगह रहने का स्थान देते हैं जिसमे  "जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और सोना " इन पाँच स्थानों को छोड़कर  राजा ने ये पाँच वस्तुएँ भी उसे दे डालींमिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर।


शृंगी ऋषि कौन थे? शृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को क्यों और किसलिए श्राप दिया? / Who was Shringi Rishi? Why and why did Shringi Rishi curse King Parikshit?



महाराज परीक्षित एक दिन शिकार के लिए जंगल में गए थे। राजा ने एक हिरन का पीछा किया और बहुत दूर तक पीछा करने पर भी राजा  उसका शिकार कर सके और थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई। उसी वन में मुनि शमीक का आश्रम था। 


राजा आश्रम में जाकर मुनि से जल की मांग की लेकिन ऋषि अपने ध्यान में लीन थे इसलिए उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। थके, हारे और प्यासे परीक्षित के सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुये कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है। 


मुनि के इस व्यवहार से बड़ा क्रोध आया राजा परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि ऋषि ने घमंड वस हमारी बात का जवाब नही दिया है और इस अपराध का उन्हें कुछ दंड देना चाहिए। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास में ही एक मरा हुआ साँप पड़ा था। 


राजा ने अपने तीर की नोक से उसे उठाकर उस साप को ऋषि मुनि के गले में डाल दिया। इतना भयंकर अपराध उनके दौरा हुआ इसका एक ही कारन था की कलियुग राजा के सिर पर सवार था जिससे की उनकी सात्‍विक बुद्धि भ्रष्‍ट हो गई। इतना सब हो जाने के बाद राजा अपने नगर वापस आ गये।


ऋषि शमीक ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है शमिक ऋषि का पुत्र शृंगी बडा ही तेजस्‍वी था उस समय वह नदी में स्नान कर रहा था। उसके दूसरे ऋषि कुमारों ने जाकर सारा वृत्तांत सुनाया कि किस प्रकार एक राजा ने उसके पिता का तिरस्‍कार किया है। 


जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा। इस प्रकार के विचार उनके मन में आया। उस ऋषिकुमार ने नदी से अपनी अंजुली में जल ले कर उसे मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके राजा परीक्षित को शाप / श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक नाम का सर्प डसेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। 



महल में वापस लौट कर आने पर जब राजा ने अपना मुकुट उतारा तो उनको अपनी गलती का बोध हुआ, ऋषि शमीक ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है। कुछ समय बाद शमीक ऋषि के समाधि टूटने पर उनके पुत्र ऋंगी ऋषि ने उन्हें राजा के कुकृत्य और अपने श्राप के विषय में बताया। 


श्राप के बारे में सुन कर शमीक ऋषि को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपनी द्रिव्य दृष्टि से देखा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और अपने पुत्र से कहा "अरे मूर्ख! तूने घोर पाप कर डाला। जरा सी गलती के लिये तूने उस महान राजा को घोर श्राप दे डाला। 


मेरे गले में मृत सर्प डालने के इस कृत्य को राजा ने जान बूझ कर नहीं किया है, उस समय वह कलियुग के प्रभाव में था। उसके राज्य में प्रजा सुखी है और हम लोग निर्भीकतापूर्वक जप, तप, यज्ञादि करते रहते हैं। अब राजा के न रहने पर अधर्म का साम्राज्य हो जायेगा। 


यह राजा श्राप देने योग्य नहीं था पर तूने उसे श्राप दे कर घोर अपराध किया है। ऋषि शमीक को अपने पुत्र के इस अपराध के कारण अत्यन्त पश्चाताप होने लगा। 


राजगृह में पहुँच कर जब राजा परीक्षित ने अपना मुकुट उतारा तो कलियुग का प्रभाव समाप्त हो गया और ज्ञान की पुनः उत्पत्ति हुई। वे सोचने लगे कि मैने घोर पाप कर डाला है। निरपराध ब्राह्मण के कंठ में मरे हुये सर्प को डाल कर मैंने बहुत बड़ा कुकृत्य किया है। 


इस प्रकार वे पश्चाताप कर रहे थे कि उसी समय ऋषि शमीक उनके राज महल में पधारे।जब राजा को द्वारपाल के द्वारा यह सन्देश मिला तो उन्होंने सब भूल कर गुरु का आदर सत्कार किया। 


मुनि शमीक राजा को बताते हैं की भूल वश मेरे पुत्र ने आपको श्राप दिया हैं की आज से सातवे दिन आपकी सर्पदंश से आपकी मृत्यु हो जाएगी।गुरु की बात सुनकर राजा ने कहा गुरुवार आपके पुत्र ने मुझे श्राप देकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। 


मेरी भी यही इच्छा है कि मुझ जैसे पापी को मेरे पाप के लिए  दण्ड मिलना ही चाहिये।  राजा परीक्षित ने अपने जीवन के शेष सात दिन को ज्ञान प्राप्ति और भगवत्भक्ति में व्यतीत करने का संकल्प कर लिया। 


राजा परीक्षित अपने बड़े पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक कर राजा परीक्षित मुक्ति के लिए अपने गुरु से आज्ञा लेकर  श्री शुकदेव जी के आश्रम में पहुंच गए। ऋषि श्री शुकदेव जी ने राजा को श्री मद्भागवत कथा का रसपान कराया जिससे की राजा को मोक्क्ष प्राप्त हुआ। श्राप के कारण सातवे  दिन सर्प दंश से राजा परक्षित की मृत्यु हो जाती हैं।



राजा जनमेजय कथा। राजा जनमेजय का राज्यभिषेक और विवाह। जनमेजय का सर्प यज्ञ 


जनमेजय राजा परीक्षित और इंद्रावती के पुत्र थे। जनमेजय का विवाह काशिराज की पुत्री वपुष्टमा से हुई थी। जनमेजय बड़े होने पर जब पिता परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्पदंश से हुआ हैं तो उसने तक्षक से प्रतिशोध लेने के लिए जनमेजय ने सर्पों के संहार के लिए सर्पसत्र नामक महान यज्ञ का आयोजन किया। 


यज्ञ प्रारम्भ होने के बाद एक एक कर सारे सर्प सर्प हवन-कुण्ड में आकर स्वयं गिरने लगे। अपराधी तक्षक डर के मारे इन्द्रदेव की शरण में पहुंचा। ऋषि आस्तीक ने नाग वंस को बचाने के लिए वे जनमेजय के यज्ञ स्थल पर पहुंच कर यज्ञ की बेहद प्रशंसा करने लगे। 


इससे प्रसन्न होकर राजा जनमेजय ने ऋषि आस्तीक से उनको मुंह मांगी वस्तु देने का वचन दिया। इस पर आस्तीक ने राजा से प्रार्थना की कि अब आप इस यज्ञ को यहीं समाप्त कर दें। ऐसा होने पर सर्पों के वंस के रक्षा हुई।   


राजा परीक्षित की कितनी संतान थी? । परीक्षित के पुत्र कौन थे? 

राजा परीक्षित के चार संताने थी जिसका नाम क्रमशः जनमेजय, भीमसेना, श्रुतसेना, और उग्रसेना था। 

राजा परीक्षित की मृत्यु कब और कैसे हुई?

ऋषि ने जब राजा परीक्षित को श्राप दिया तब राजा परीक्षित मुक्ति के लिए अपने गुरु से आज्ञा लेकर  श्री शुकदेव जी के आश्रम में पहुंच गए। ऋषि श्री शुकदेव जी ने राजा को श्री मद्भागवत कथा का रसपान कराया जिससे की राजा को मोक्क्ष प्राप्त हुआ। श्राप के कारण सातवे  दिन सर्प दंश से राजा परक्षित की मृत्यु हो जाती हैं।

परीक्षित के बाद कौन राजा हुआ? 

परीक्षित की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर की राजगद्दी पर सम्राट जनमेजय विराजमान हुये।

पांडव के वंश का एकमात्र चिन्ह कौन रह गया था?

पांडवों का एक मात्र चिन्ह अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित रह गया था।

कलयुग का पहला राजा कौन था?

परीक्षित कलयुग के प्रथम राजा थे 

राजा परीक्षित को श्राप कैसे लगा?

राजा परीक्षित ने मरा हुआ सांप ऋषि के गले में डाल दिया। जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने यह समाचार सुना तो वह अत्यंत क्रोधित हो गए और उसी समय राजा को श्राप दे दिया की आज के सातवे दिन यही तक्षक सर्प के द्वारा राजा की मृत्यु होगी। 

राजा परीक्षित को कौन से ऋषि ने श्राप दिया था?

ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा परीक्षित को श्राप दिया था

परीक्षित के गुरु कौन थे?

राजा परीक्षित के गुर शुकदेव जी थे। 


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