प्रभु श्री राम जन्म, विवाह और रोचक जानकारिया

प्रभु श्री राम जन्म, विवाह और रोचक जानकारिया
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प्रभु श्री राम जन्म, विवाह और रोचक जानकारिया  / Shri Ram Birth, Marriage and interesting information



भगवान राम का जन्म कब और किस युग में हुआ था ? श्रीरामचन्द्र जी का समय त्रेतायुग माना जाता हैं। श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण और तुलसीदास कृत राम चरित मानस में वर्णित है। भारत में श्री राम अत्यंत पूज्यनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं तथा विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं। प्रभु श्री राम एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति आदर्श राजा और आदर्श पिता के रूप में जाने जाते हैं इनके इन्ही गुणों के कारण श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता हैं।

राम जन्म की कहानी


पुराणों के अनुसार प्रभु श्री रामचन्द्र भगवान विष्णु के अवतार हैं, रामायण कथा के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ की पत्नी को पुत्र उत्पन्न नहीं हो रहा था तो गुरु वशिष्ठ के परामर्श से उन्होंने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाने का निश्चय किया और इसके लिए राजा दशरथ श्रृंगी ऋषि को बुलावा भेजा। श्रृंगी ऋषि पुरे विधि विधान से यज्ञ करवाया , यज्ञ से प्रसाद के रूप में मिली खीर को राजा दशरथ ने अपने तीनो रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के पस्चताप तीनो रानियाँ गर्भवती हो गयी। और नौ माह के उपरांत राजा को चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।


चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से भगवान् विष्णु एक शिशु के रूप में जन्म लिया । इसके पश्चात रानी कैकेयी ने एक पुत्र और रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। चार पुत्रों को पाकर महाराज दशरथ बहुत प्रसन्न हुए और पूरे राज्य में उत्सव मनाया गया। प्रजा, दरबारियों, मंत्रियों आदि को उपहार दिए गए। ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान दक्षिणा दिया गया।


राम का नाम करण किसके द्वारा किया गया ?

राजा दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया था।  राजा दशरथ और कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र का नाम राम,  राजा दशरथ और कैकयी के पुत्र का नाम भरत , राजा दशरथ और सुमित्रा के पुत्रो का नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे।

भगवान राम के गुरु का क्या नाम था ?। भगवान राम के कितने गुरु थे?


राम के दो गुरु थे एक तो गुरु वशिष्ट और दूसरे ऋषि विश्वामित्र जी  
जब चारो राज कुमार बड़े हुए तो उनको गुरुकुल भेज दिया गया। चारो राजकुमारों की शिक्षा गुरु वशिष्ठ के आश्रम में पूरी हुई। गुरु वशिष्ठ के द्वारा चारो भाइयो को अस्त्र-शस्त्रों की विद्या तथा राजनीती कूटिनीति की शिक्षा प्रदान किया गया। आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचन्द्र गुणों में भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा की सेवा आगे रहने से राम अत्यंत लोकप्रिय होने लगे। उनमें अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए। राम अपने चारो भाइयों के साथ निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देख कर गर्व और आनन्द से भर उठता था।

प्रभु श्री राम और लक्षमण को विश्वामित्र ने भी अस्त्र-शस्त्रों की विद्या प्रदान की थी


विश्वामित्र ने राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को साथ चलने की लिए क्यों कहा ? Ramayan : Vishwamitra and Rama story in Hindi


ऋषि विश्वामित्र और कुछ ऋषि मुनियो के साथ वन में आश्रम बना कर रहते थे। जब जब ऋषि विश्वामित्र और ऋषि मुनि यज्ञ करते हर बार राक्षस आकर यज्ञ का विध्वंस कर देते हैं और ऋषि-मुनियों को प्रताड़ित करते हैं। ऋषि विश्वामित्र और ऋषि मुनि के बार-बार प्रयास के बाद भी जब यज्ञ संपन्न नहीं हो पाता तो ऋषि विश्वामित्र काफी दुखी होते हैं और यज्ञ पूरा करने का उपाय तलाशने के लिए ध्यान करते हैं। ध्यान अवस्था में  उन्हें ज्ञात होता है कि अयोध्या में राजा दशरथ के यहां प्रभु विष्णु ने श्री राम के रूप में जन्म लिया है।


इसके बाद ऋषि विश्वामित्र अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। विश्वामित्र के अयोध्या पहुंचने पर राजा दशरथ उनका आदर सत्कार करते हैं और आने का कारण जानने की कोसिस करते हैं । ऋषि विश्वामित्र दशरथ को बताते हैं की इस समय राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया और वे कोई भी यज्ञ संपन्न नहीं होने देते इसलिए हे राजन  इस पृथवी के कल्याण हेतु मैं आपसे दोनों पुत्र  राम और लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए मांगने आया हूँ । लेकिन राजा दशरथ यह कहते हुए ऋषि विश्वामित्र से मना कर देते हैं कि वे अभी छोटे बालक हैं। यज्ञ की रक्षा के लिए वे स्वयं अपनी सेना के साथ चलने को तैयार हैं।


इस पर ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो जाते हैं और राजा दशरथ को श्राप देने लगते हैं तभी गुरु वशिष्ठ ऋषि विश्वामित्र को शांत करते हैं और राजा दशरथ को समझाते हैं। की राम और लक्ष्मण को  विश्वामित्र के साथ भेजने से इस पृथवी के साथ साथ पुरे ब्रम्हांड का कल्याण होगा उसके साथ रघुकुल की मान और मर्यादा भी बढ़ेगी। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा मानकर राजा दशरथ श्री राम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ भेज देते हैं। राम और लक्ष्मण वन में राक्षसी ताड़का, सुबाहू और बहुत सारे राक्षषो का वध करते हैं। मारीच नाम के राक्षस को प्रभु श्री राम ने अपने एक बाण से १०० जोजन दूर भेज देते हैं।


राम और लक्ष्मण उस वन को राक्षसो से मुक्त करा देते हैं।  इन दोनों भाइयों की वीरता देख ऋषि विश्वामित्र बहुत ही प्रशन्न होते हैं और दोनों भाइयों को बहुत से अस्त्र और शस्त्र की विद्या देते हैं। ऋषि विश्वामित्र से प्राप्त अस्त्र और शस्त्र की विद्या से दोनों भाई अपने आपको बहुत गर्व महसूस करते हैं और इसके लिए  दोनों भाई ऋषि विश्वामित्र के लिए आभार प्रगट करते हैं



अहिल्या उद्धार,  राम का विवाह

राक्षशो का अंत करने के बाद विश्वामित्र को मिथिला नरेश जनक  का निमँत्रण पत्र मिलता हैं। ऋषि विश्वामित्र राम और लक्षमण के साथ जनक पूरी के लिया निकल पड़ते हैं। रास्ते में उन्हें गौतम ऋषि का आश्रम पड़ता हैं जंहा पर श्री राम गौतम ऋषि   सापित देवी अहिल्या का उद्धार करते हुए आगे बढ़ते हैं  (अहिल्या के उद्धार की कथा पढ़ने की लिए क्लिक करे )



ऋषि विश्वामित्र के साथ दोनों भाई मिथिला पहुंचते हैं, जंहा पर मिथिला नरेश अपनी सुपुत्री सीता स्वयम्बर का आयोजन किया था। इस स्वयम्बर को देखने दोनों भाई राज महल में पहुंचते हैं। इस स्वयम्बर की  शर्त यह थी की जनक जी के पास एक शिव धनुष था जिसका नाम पिनाक था यह धनुष बहुत ही विशाल था जो भी महापुरुष इस शिव धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। राज महल में जितने भी राजा उपस्थित थे उनमे से किसी ने भी इस शिव धनुष को तोड़ने की बात दूर कोई इसको हिला भी नहीं सका।  जिसे यह देख राजा जनक बहुत ही दुखी हुए और उन्होंने  आवेश में आकर यह कह दिया की शायद आज यह पृथवी वीरो से रिक्त हो गयी हैं जिसे सुनकर लक्ष्मण को बहुत बुरा लगता हैं और राजा जनक से उलझ जाते हैं, अंत में ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से भगवान् श्री राम शिव धनुष को तोड़ कर सीता से विवाह करते हैं .



राम वनवास

पिता जी के वचनो का पालन करने के लिए संन्यासी भेष भूषा में भगवान् राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वन के लिए निकले पड़े। वन मे सब से पहले राम वाल्मीकि के आश्रम में गए और उनका आश्रीवाद लेकर आगे के लिए निकल दिए।  आगे जाकर वे भारद्वाज ऋषि मुनि से मिले ऋषि मुनि ने राम को आशर्वाद दिया और उनको परामर्श दिया की आपके लिए वन में यमुना पार चित्रकूट ही उचित स्थान होगा। भगवान् राम गुरु के आदेशानुसार चित्रकूट पहुंच गए और मन्दाकिनी नदी के किनारे कुटिआ बना कर रहने लगे। भरत और राम का  मिलन इसी स्थान पर हुआ था।



कुछ समय वंहा रहने के पश्चाताप भगवान राम चित्रकूट से दंडकारण्य वन के लिए निकल दिए। रास्ते में उन्हें ऋषि  अत्रि और माता अनुसूया का आश्रम मिला जंहा पर उन्होंने उनका आशीर्वाद लिया और माता अनुसूया माता सीता को पतिधर्म की शिक्षा प्रदान की। भगवान् राम और लक्ष्मण को ऋषि  अत्रि  ने बहुत सारे अश्त्र प्रदान किये। भगवान् राम वन के रास्ते में शरभङ्ग ऋषि , सुतीक्षण मुनि और अगस्त्य ऋषि मुनियो के आश्रम में जाकर उनका आर्शीवाद लिया और उस दंडकारण्य वन में सारे राक्षसों का संहार करके पंचवटी के लिए निकल दिए।  पंचवटी पहुंच कर के गोदावरी नदी के किनारे कुटिआ बना कर रहने लगे।  पंचवटी में ही लक्षमण ने सुपर्णखा के नाक और कान काट दिए थे  पंचवटी में ही लक्षमण ने सुपर्णखा के नाक और कान काट दिए थे। खर और दूषण जैसे राक्षसों का वध भी पंचवटी में ही भगवान् राम ने किया था , पंचवटी में ही दुष्ट रावण अपने मामा मरीचि के साथ छल करके माता सीता का अपहरण किया था 


प्रभु श्री राम का जन्म कब हुआ था ?

भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम ने चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन राजा दशरथ के घर पर जन्म लिया था। 


भगवन श्री राम का विवाह कब हुआ था?

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष क पंचमी के दिन भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। 


राम के गुरु का क्या नाम था? भगवान राम के कितने गुरु थे?

त्रेतायुग में जन्मे भगवान राम के दो गुरु थे एक तो गुरु वशिष्ट और दूसरे ऋषि विश्वामित्र जी। प्रारंभिक शिक्षा कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ से और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा विश्वामित्र जी ने भगवान राम को दी हैं। 


भगवान राम का राज्याभिषेक कब हुआ था?

प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक विजयदशमी पर हुआ था।


राम का विवाह कहाँ हुआ था?

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष क पंचमी के दिन भगवान राम और सीता का विवाह मिथिला राज्य जनकपुर में हुआ था। 


राम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है?

आदर्श भाई,  प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा के रूप में भगवान राम को जाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजा जाता है।


विभीषण के राजतिलक के बाद राम तत्काल अयोध्या क्यों लौटना चाहते थे?

भगवान राम विभीषण के राजतिलक के बाद लंका में इसलिए नहीं रुकना चाहते थे क्योंकि उनके वनवास का वह चौदह वर्ष पूरा हो चूका था और वे अयोध्या अतिशीघ्र लौटना चाहते थे, भरत को उन्होंने वचन दिया था कि जैसे ही चौदह वर्ष पूरा हो जायेगा उसके अगले दिन वे अयोध्या में होंगे |


भगवान राम के बाद अयोध्या का राजा कौन बना?

भगवान राम के बाद अयोध्या का राजा उनका बड़ा बेटा कुश राजा बना था। 


भगवान राम की मृत्यु कब और कैसे हुई?

भगवान श्री राम की जब सभी लीलाएं समाप्त हो गयीं तब उन्होंने अपना शरीर त्यागना चाहा, अतः सरयू नदी में भगवान श्री राम ने समाधी ली। 




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