द्रौपदी के चीर-हरण का विरोध कौरवों के किस भाई ने किया था?
द्रोपती का चीर हरण - महाभारत कथा
एक बार शकुनि ने दुर्योधन को सलाह देता हैं की वो पांडवों को (चौरस ) जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करे। पांडवों ने अपने भाई दुर्योधन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उस सभा में भरत वंश के शासक धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और महात्मा विदुर जैसे महान लोग भी उपस्थित थे। शकुनि मामा ने छल कपट से पांडवों को हराना शुरू किया। इस खेल में पांडव अपना राज्य पाठ सब हार गए। धर्मराज युधिष्ठर ने स्वयं और अपने चारों भाइयों को भी दांव पर लगाया और हार गए। अंत में जब दांव पर लगाने के लिए युधिष्ठिर के पास कुछ नहीं बचा, तब शकुनि ने आखिरी चाल चली और पांडव से कहा की यदि एक चाल और खेल लो और यदि तुम लोग जीत गए तो अब तक जो कुछ हारे हो वह तुम्हे लौटा दिया जायेगा इसी लालच में आकर सब कुछ पाने की इच्छा में पांडव ने बिना सोचे समझे द्रोपती को भी दाव पर लगा दिया और अंतः में पांडव द्रोपती को भी जुए में हार गए।
द्रौपदी को जीतने के बाद दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को आदेश दिया कि वो द्रौपदी को भरी सभा में बाल पकड़कर और घसीटते हुए लेकर आए। दुशासन ने गुस्से में द्रौपदी के बाल पकड़ लिए और उसे खींचते हुए भरी सभा में लाकर खड़ा कर दिया। दुर्योधन ने दुशासन को आज्ञा दी कि वो द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दे।
जब द्रौपदी का अपमान किया जा रहा था पुरे राज दरबार में तब वहां पर बड़े बड़े योध्या बैठे थे। भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायाधीश और महान लोग भी उस सभा में मौजूद थे , लेकिन वहां मौजूद सभी महान प्रकाशमान अंधे के सामान शीश झुकाए हुए बैठे थे। और किसी के मुख से इसका जरा भी विरोध करने का साहस नहीं हुआ अंत में इन सभी को उनकी चुप्पी के लिए सजा भी मिली।
दुर्योधन के आदेशानुसार दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी को पूरी सभा के सामने उतारना शुरू कर दिया। वहा हर कोई चुप था सबके सब सिर झुकाये बैठे थे। कौरव की ओर से कोई भी इस अपराध के लिए न तो दुर्योधन और न ही दुशासन को किसी ने रोकने की कोशिस की। पांडव के सिर तो लज्जा से झुके हुए थे वो भी द्रौपदी के सम्मान को नहीं बचा सके। द्रोपती रोती बिलखती हुई हर एक के पास गयी थी लेकिन किसी ने भी द्रोपती की मदद नहीं की। दुशासन ने जैसे ही द्रौपदी के वस्त्र को हाथ लगाया द्रौपदी असहाय होकर अपनी आँखें बंद कर लीं और वासुदेव श्री कृष्ण को याद किया । उस समय श्रीकृष्ण बैठक में मौजूद नहीं थे।
द्रौपदी ने कहा, हे गोविंद, आज विश्वास और अविश्वास के बीच युद्ध चल रहा है। आज मुझे यह देखना है कि क्या कोई भगवान है या नहीं जो इस भरी सभा में इस अबला की मदद कर सके। तब श्रीहरि कृष्ण ने सभी को एक चमत्कार प्रस्तुत किया और द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाना शुरू कर दिया। जब तक दुशासन थक कर हार कर बेहोश नहीं हो गया। किन्तु द्रौपदी का वस्त्र हरण नहीं कर सका। हर कोई स्तब्ध था। सभी लोग समझ गए कि यह एक चमत्कार है। ऐसा कहा जाता है महाभारत युद्ध के पीछे सबसे बड़ा कारण द्रौपदी चीरहरण ही था।
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महाभारत पात्र
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