द्रौपदी का जन्म, और स्वम्बर

द्रौपदी का जन्म, और स्वम्बर
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द्रौपदी कहानी हिंदी में - Draupadi Story in Hindi 


प्राचीन भारत के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहाँ यज्ञकुण्ड से हुआ था। अतः यह ‘यज्ञसेनी’ भी कहलाई। द्रौपदी पूर्वजन्म में ऋषि कन्या थी। उसने पति पाने की इच्छा से घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव शंकर ने उसे वर मांगने के लिए कहा। द्रौपदी ने  शंकर से कहा कि वह सर्वगुण संपन्न पति चाहती है। शंकर ने कहा कि अगले जन्म में उसके पांच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पांच बार दोहरायी थी


द्रौपदी जन्म की कहानी - Draupadi janam Story in hindi


महाकाव्य महाभारत के अनुसार एक बार राजा द्रुपद ने कौरवो और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का अपमान कर दिया था। इसलिए जब पांच पण्डवों और कौरवों ने शिक्षा समाप्ति के पश्चात गुरु द्रोणाचार्य के पास गए और उनसे गुरु दक्षिणा माँगने को कहा तो गुरु द्रोणाचार्य को अपने अपमान की बात याद आ गयी और उन्होंने उनसे गुरु दक्षिणा में राजा द्रुपद को बंदी बनाकर अपने समक्ष प्रस्तुत करने को कहा।



गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा लेकर सबसे पहले कौरव राजा द्रुपद को बंदी बनाने के लिए गए दोनों में युद्ध हुआ और कौरव द्रुपद से हार गए। कौरवों के पराजित होने के बाद पांच पांडव गए और उन्होंने द्रुपद को बंदी बनाकर द्रोणाचार्य के समक्ष प्रस्तुत किया। जिससे गुरु द्रोण बहुत खुश हुए।



द्रुपद को बन्दी के रूप में देख कर द्रोणाचार्य ने कहा हे द्रुपद अब तुम्हारे राज्य का स्वामी मैं हो गया हूँ। मैं तो तुम्हें अपना मित्र समझ कर तुम्हारे पास आया था किन्तु तुमने मुझे अपना मित्र स्वीकार नहीं किया था। अब बताओ क्या तुम मेरी मित्रता स्वीकार करते हो? द्रोणाचार्य से यह बात सुनकर राजा द्रुपद बहुत लज्जित हुए और लज्जा से अपना सिर झुका लिया और अपनी भूल के लिये क्षमायाचना करते हुये बोले, "हे द्रोण!  आपको अपना मित्र न मानना मेरी सबसे बड़ी  भूल थी और उसके लिये अब मेरे हृदय में पश्चाताप है।


मैं तथा मेरा राज्य दोनों ही अब आपके आधीन हैं, अब आपकी जो इच्छा हो करें।" द्रोणाचार्य ने कहा, "तुमने कहा था कि मित्रता समान वर्ग के लोगों में होती है। अतः मैं तुमसे बराबरी का मित्र भाव रखने के लिये तुम्हें तुम्हारा आधा राज्य लौटा रहा हूँ।" इतना कह कर द्रोणाचार्य ने गंगा नदी के दक्षिणी तट का राज्य द्रुपद को सौंप दिया और शेष को स्वयं रख लिया।


गुरु द्रोण से पराजित होने के उपरान्त महाराज द्रुपद अत्यन्त लज्जित हुये और उन्हें किसी प्रकार से नीचा दिखाने का उपाय सोचने लगे. इसी चिन्ता में एक बार वे घूमते हुये कल्याणी नगरी के ब्राह्मणों की बस्ती में जा पहुँचे.वहाँ उनकी भेंट याज तथा उपयाज नामक महान कर्मकाण्डी ब्राह्मण भाइयों से हुई.


राजा द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न कर लिया एवं उनसे द्रोणाचार्य के मारने का उपाय पूछा.उनके पूछने पर बड़े भाई याज ने कहा, “इसके लिये आप एक विशाल यज्ञ का आयोजन करके अग्निदेव को प्रसन्न कीजिये जिससे कि वे आपको वे महान बलशाली पुत्र का वरदान दे देंगे.” महाराज ने याज और उपयाज से उनके कहे अनुसार यज्ञ करवाया.उनके यज्ञ से प्रसन्न हो कर अग्निदेव ने उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से युक्त था. उसके पश्चात् उस यज्ञ कुण्ड से एक कन्या उत्पन्न हुई जिसके नेत्र खिले हुये कमल के समान थे, भौहें चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उसका वर्ण श्यामल था.उसके उत्पन्न होते ही एक आकाशवाणी हुई कि इस बालिका का जन्म कौरवों के विनाश के हेतु हुआ है… बालक का नाम धृष्टद्युम्न एवं बालिका का नाम कृष्णा रखा गया जो की राजा द्रुपद की बेटी होने के कारण द्रौपदी कहलाई.


द्रौपदी का विवाह / स्वयंवर - Draupadee ka Vivaah / Svayanvar in Hindi


राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था| देश-विदेश से महापराक्रमी क्षत्रिय कुमार राजकुमारी का वरण करने की इच्छा से आए हुए थे| इस राज्य सभा में जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी सम्मिलित थे।उस समय पांडव वनवास का समय काट रहे थे| उन्हें भी जब स्वयंवर का पता चला तो कौतूहलवश वे भी द्रुपद की नगरी में आ पहुंचे| कुछ ही देर में राजकुमारी द्रौपदी हाथ में वरमाला लिये अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ उस सभा में पहुँचीं।


राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न स्वयंवर की शर्त सब अतिथि मान्य गण के सामने उदिकृस्ट किया की जो कोई वीर योद्धा स्तंभ के ऊपर घूमती हुई मछली की आंख को, नीचे कढ़ाई में रखे तेल में उस मछली की परछाईं को देखकर वेध करेगा उसे ही मेरी बहन द्रौपदी अपने पति के रूप में स्वीकार करेगी | स्वयंवर मण्डप में उपस्थित सभी योद्धाओं ने अपना-अपना कौशल दिखाया, लेकिन कोई भी उस मछली की आंख को नहीं वेध पाया|



उस स्वम्बर में कौरव भी वहां उपस्थित थे| वे भी प्रयत्न करने के पश्चात लज्जित होकर अपने-अपने स्थान पर आ बैठे| जब सभा में चारों ओर निराशा व्याप्त हो गई, तो कर्ण ने उठकर अपना बाण उस मछली की आंख के लिए साधा और वह वीर निश्चित ही उसको वेध देता, लेकिन सूत-पुत्र होने के नाते उसको क्षत्रिय कन्या के साथ विवाह करने का अधिकार नहीं दिया गया| सभा में चारों ओर उसके विरुद्ध स्वर उठने लगे| स्वयं द्रौपदी ने ही उसका सूत-पुत्र कहकर तिरस्कार किया था| किसी को भी यह पता नहीं था कि यह कर्ण भी क्षत्रिय पुत्र है, चूंकि सूत ने उसको पाल-पोसकर बड़ा किया था, इसलिए यहीं तक का ज्ञान सबको था| कर्ण जब इतना अपमानित हुआ तो वह राज महल से बाहर आ गया


अंत में, अर्जुन ने धनुष पर बाण चढ़ाया और, तेल से भरे कढाहे  में मछली की छाया देखकर, उसकी आँख में तीर से भेद दिया जैसे ही अर्जुन ने स्वम्बर की शर्ते पूरी की द्रौपदी ने आकर उसके गले में माला पहना दी। जैसे ही सभी क्षत्रियों ने देखा की एक ब्राह्मण ने वह कर दिखाया जो सारे योद्ध्या नहीं कर सके वे सारे मिलकर इसका विरोध करने लगे और सारे मिलकर अर्जुन के ऊपर आक्रमण करने के लिए  तैयार हो गए।  यह सब देख श्री कृष्ण आगे आये और सारे क्षत्रियों को समझाए की स्वम्बर की जो शर्त थी उसको पूरा करने के लिए आप सब तो भी मौका दिया गया था लेकिन आप सब वह नहीं कर पाए। यह ब्राह्मण कुमार ने स्वम्बर की शर्ते पूरा किया हैं तो द्रोपती का असली हक़दार यही हैं उसके बाद सारे राजा मान गए और वह से चले गए।


परन्तु राजा द्रुपद और उनके बेटे धृष्टद्युम्न को बहुत दुःख हुआ की उनकी राजकुमारी का विवाह एक ब्राह्मण से हुआ हैं वे चाहते थे की उनकी राजकुमारी का विवाह किसी अच्छे कुल और किसी वीर योध्या के साथ हो। राजा द्रुपद  बेटी के प्रति बहुत चिंतित हो उठे की राजमहल में रहने वाली राजकुमारी अपना जीवन बसर कैसे करेगी। श्री कृष्ण राजा के ह्रदय की बात जान गए और कहा महाराज आप ब्यर्थ ही चिंता करते हो आप बहुत ही बड़े भाग्य शैली हैं की आपको ऐसा दामाद मिला हैं यह ब्राह्मण कुमार कोई और नहीं पुरे ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े धनुर्धारी कुंती पुत्र अर्जुन हैं।  यह बात सुन कर महाराजा द्रुपद और उनके बेटे धृष्टद्युम्न बहुत ही प्रसन हुए।


अर्जुन अपने भ्राता के साथ द्रौपदी को माँ के पास ले गए ,और बाहर से ही माँ को आवाज लगायी ! माँ देखो हम आपके लिए अद्भुत् वस्तु लाये हैं , अंदर से माँ  ने जबाब दिया जो भी लाये हो उसे पाचो में बाट लो, बाद में यह ज्ञात होने पर कि अद्भुत्  वस्तु वधू के रूप में हैं, कुन्ती को अत्यन्त पश्चाताप हुआ किन्तु माता के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिये द्रौपदी ने पाँचों पाण्डवों को पति के रूप में स्वीकार कर लिया।उसी दिन से द्रोपती पांचो पति की पत्नी कहलायी और उनका एक उपनाम पांचाली पड़ गया.


द्रौपदी का चीर हरण  (पढ़ने के लिए क्लिक करे)



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