धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह

धृतराष्ट्र - गांधारी की शादी । बकरे के साथ गांधारी का पहला विवाह क्यों ?



जब धृतराष्ट्र बड़े हुए तो उनकी शादी का प्रस्ताव भीष्म ने गांधार नरेश की एकलौती बेटी गांधारी के लिए लेकर गए इस विवाह प्रस्ताव को गांधारी के माता-पिता ने तो स्वीकार कर लिया और लेकिन जब गांधारी को यह मालूम हुआ की उनके होने वाले पति धृतराष्ट्र जन्म से ही दृष्टिहीन है तो अपने माता-पिता द्वारा दिए गए वचन की लाज रखने के लिए वह इस विवाह के लिए राजी हो गई। लेकिन शकुनि को यह कदापि स्वीकार नहीं हुआ कि उसकी इकलौती बहन एक दृष्टिहीन की पत्नी बने। इस विवाह प्रस्ताव के लिए शकुनि के राजी ना होने के बावजूद गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया। विवाह के बाद गांधारी ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। इस तरह दोनों पति पत्नी अंधे के समान हो गए और अपना जीवन बिताने लगे



धृतराष्ट्र ने क्यों अपनी पत्नी के सारे परिवार वाले को मरवा डाला ?


शायद आप में से बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि धृतराष्ट्र ने अपनी पत्नी गांधारी के समस्त परिवार को मरवा दिया था। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया था? जब गांधारी का जन्म हुआ तो जन्म के समय जब गांधारी की कुंडली बनवाई गई तो ज्योतिषाचार्यों ने गांधारी के विवाह से जुड़ी एक परेशान कर देने वाली बात गांधार नरेश को बताई, ज्योतिषाचार्यों ने गांधारी के पिता को बताया कि गांधारी की कुंडली में उसके दो विवाह होने के योग हैं। गांधारी की पहले पति की मौत निश्चित है, उसका दूसरा पति ही जीवित रह सकता है।


गांधारी के विषय में यह बात सुनकर गांधार नरेश को बहुत चिंता हुई और उन्होंने ज्योतिषाचार्यों से इसका कोई उपाय बतलाने के लिए कहा, ज्योतिषाचार्यों  ने गांधार नरेश को एक उपाय बताया की यदि गांधारी का विवाह बकरे से कर दिया जाय और विवाहपरोंत उस बकरे की बलि चढ़ा दिया जाय।  ज्योतिषाचार्यों  के इस उपाय के अनुसार गांधारी के पिता ने उसका विवाह एक बकरे के साथ करवाकर उस बकरे की बलि दे दी। ऐसा कर गांधारी की कुंडली में पति की मौत का योग अब समाप्त हो गए हैं और गांधार नरेश गांधारी के दूसरे विवाह और पति की आयु को लेकर निश्चिंत हो गए,और ये बात धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह के समय छुपाई गई थी


धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह होने के कुछ समय बाद जब धृतराष्ट्र को गांधारी के विधवा होने जैसी बात पता चली तो वह आगबबूला हो उठा। क्रोध के आवेग में आकर धृतराष्ट्र ने गांधार नरेश पर आक्रमण किया और उस परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को कारागार में डलवा दिया। युद्ध के बंधकों की हत्या करना धर्म के खिलाफ है, इसलिए धृतराष्ट्र ने उन्हें भूख से तड़पा-तड़पाकर मारने का निश्चय किया।

Dhritarashtra Ka Birth, Vivaah aur Kaurav Birth in Hindi




धृतराष्ट्र ने अपने सैनिकों से कहा कि गांधार राज्य के बंधकों को पूरे दिन में मात्र एक मुट्ठी चावल वितरित किए जाएं। ऐसे हालातों में सभी बंधकों ने धृतराष्ट्र के पुरे परिवार से बदला लेने की कसम ली । और सारे बंधकों ने सर्वसम्मति से सबसे छोटे पुत्र शकुनि को जीवित रखने का निश्चय किया ताकि वह धृतराष्ट्र के परिवार को तबाह कर सके और हमारे इस अपमान का बदला ले सके । मुट्ठीभर चावल सिर्फ शकुनि को खाने के लिए दिए जाते थे जिससे की शकुनि जीवित रहे अन्न न मिलने की वजह से धीरे- धीरे सभी बंधक अपना दम तोड़ने लगे।



शकुनि के सामने धीरे -धीरे कर उसका पूरा परिवार समाप्त हो गया और उसने यह मन में ठान ली कि जब तक वह इस कुरुवंश को समाप्त नहीं कर लेता तब तक वह चैन से नहीं बैठेगा। अपने अंतिम क्षणों में शकुनि के पिता ने उससे कहा कि उसकी मौत के पश्चात उनकी अस्थियों की राख से वह एक पासे का निर्माण करे। यह पासा सिर्फ शकुनि के कहे अनुसार काम करेगा और इसकी सहायता से वह कुरुवंश का विनाश कर पाएगा। ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की रूह वास कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था।





कौरवो का जन्म कैसे हुआ?


धृतराष्ट्र और गांधारी की शादी बहुत समय हो जाने के बाद भी दोनों को कोई संतान नहीं तब महर्षि वेदव्यास जी की तपोबल के कारण गांधारी गर्ववती होकर दो साल बाद एक मांसपिंड को जन्म दिया। जिससे १०० पुत्र और १ कन्या का जन्म हुआ। गांधारी के सभी पुत्रों में से दुर्योधन सबसे बड़ा और अपने माता-पिता का सबसे प्रिय पुत्र था। एक कथा के अनुसार गांधारी जब गर्भवती थी, तब उनकी एक दासी धृतराष्ट्र की देखभाल कर रही थी।



एकदिन वे गलती से धृतराष्ट्र को स्पर्श कर ली। महाराज कामुक हो परे ओर दासी के सम्भोग किया। इस शारीरिक संबंध के बाद दासी  गर्भवती हो गई और युयुत्सु नामक एक पुत्र का जन्म दिया। युयुत्सु को धृतराष्ट्र ने अस्वीकार किया, इसलिए वे पांडवो के दल में समवेत हो गए।



धृतराष्ट्र अपने पुत्र मोह के कारण ही दुर्योधन के कुछ गलत करने पर भी उसके कार्यों पर मौन रहे। दुर्योधन की गलत इच्छाओं को पूरा करने में भी उन्होंने सहायता की। वह उस पर कुछ नहीं बोले महाराज धृतराष्ट्र का यही पुत्र मोह आगे चलकर पूरे कौरव वंश के नाश का मुख्या कारण बना।



धृतराष्ट भीम को क्यों मरना चाहते थे?


धृतराष्ट महाभारत समाप्त होने के बाद पांडवो से बहुत गुस्से थे क्योंकि उनके कुल का विध्वंस उन्ही के द्वारा था धृतराष्ट भीम के उपर बहुत ही ज्यादा क्रोधित थे क्योंकि उनके सबसे प्रियपुत्र दुर्योधन को मारने के लिए।  महाभारत  युद्ध समाप्त होने के बाद विजयी पाण्डु और कुंती पुत्र सत्ता के औपचारिक हस्तांतरण के लिए हस्तिनापुर पहुंचे। पांडव अपने चाचा को गले लगाने और उनके सम्मान करने के लिए राज महल आते हैं ।



धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को दिल से गले लगाया जब धृतराष्टि भीम के पास आ गया, भगवान कृष्ण ने खतरे को पहले ही  महसूस कर लिया और भीम की जगह उनके सवरूप एक लोहे की प्रतिमा धृतराष्ट के साथ गले मिलने के लिए आगे बढ़ाया जिसे धृतराष्ट ने  उस प्रतिमा को टुकड़ों में कुचल दिया, और फिर रोते हुए बैठ गए  यह सब देख देवकीनंदन ने धृतराष्ट से बोले आप शोक मत प्रगट करो भीम अभी जिन्दा हैं जिसको आपने कुचला वह तो भीम के सामान उनका एक मूर्ति था जब यह बात धृतराष्ट को पता चली तो वह अपने इस कृत्य और मूर्खता के लिए माफी मांगी और पूरे दिल से भीम और अन्य पांडवों को अपना लिया।


धृतराष्ट्र और गांधारी का युध्य बाद क्या हुआ?


महाभारत के युद्ध के बाद धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी, भाभी कुंती और पांडवों के साथ एक ही महल में बहुत समय तक रहने लगे थे।  एक दिन धृतराष्ट्र के मन में वैराग्य का भाव जाग गया। और वह अपनी पत्नी गांधारी सहित कुछ और लोगों के साथ वन में तपस्या करने चले गए। यह माना जाता है कि उन सभी को जंगल में आग में फंसे और मोक्ष प्राप्त हुआ।

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