राजा शल्य कौन थे ? महाभारत में शल्य कौन थे? शल्य ने युधिष्ठिर को क्या वचन दिया? महाभारत में शल्य का क्या योगदान था
जब सारे प्रयास धरासायी हो गए और यह निश्चित हो गया कि अब महाभारत का युद्ध होगा ही तो उस परिस्थित में कुछ राजा और योध्या ऐसे भी थे जो बहुत ही चिंतित थे क्योंकि वो लोग दोनों पक्षों के रिश्तेदार, मित्र व गुरु थे। उन्ही में से एक थे मद्र देश के राजा शैल्य जो पाण्डु पुत्र नकुल और सहदेव के सगे मामा थे। पांडु पत्नी माद्री के भाई राजा सैल्य के पास एक विशाल सेना थी। राजा शैल्य अपने राज्य से युध्य करने निकले थे पांडवो के पक्ष में लेकिन दुर्योधन की कपटी चाल ने शाल्य को अपने पक्ष में युध्य करने के लिए राजी करा लिया।
दुर्योधन का कपटी चाल कैसे किया शाल्य को अपने साथ युद्ध करने के लिए ?
जहां भी राजा शल्य की सेना पड़ाव डालती, वहां दुर्योधन के मंत्री उनके खाने-पीने की उचित व्यवस्था कर देते। इतनी अच्छी व्यवस्था देखकर राजा शल्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें लगा कि ये प्रबंध युधिष्ठिर ने करवाया है। उसी समय दुर्योधन अपने मामा शकुनि के साथ उस शिविर में पहुँचता हैं जंहा पर राजा अपने सैनिको के साथ विश्राम कर रहे थे। दुर्योधन के वंहा पहुंचने के बाद राजा शल्य को यह पता चलता हैं की यह सारी व्यवस्था दुर्योधन ने की हैं।
राजा शल्य ने दुर्योधन से कहा की जाने अनजाने में मैंने आपका अतिथि सत्कार स्वविकार किया हैं इसलिए मैं तुम्हे आश्रीवाद दिए यंहा से नहीं जा सकता। दुर्योधन उसी समय उनके सामने आ गया और युद्ध में सहायता करने का निवेदन किया। राजा शल्य ने उन्हें हां कह दिया। इस प्रकार दुर्योधन ने राजा शल्य को छल द्वारा अपनी ओर से युद्ध करने के लिए राजी कर लिया था ।
युधिष्ठिर के पास जाकर राजा शल्य ने उन्हें सारी बात बता दी। युधिष्ठिर ने कहा कि आपने दुर्योधन को जो वचन दिया है उस वचन को पूरा कीजिए। युद्ध के समय आप कर्ण के सारथि बनकर उसे भला-बुरा कहिएगा ताकि उसका गर्व नष्ट हो जाए और उसे मारना आसान हो जाए। राजा शल्य ने ऐसा ही किया। कर्ण की मृत्यु के बाद अंतिम दिन दुर्योधन ने राजा शल्य को कौरवों का सेनापति बनाया। युधिष्ठिर से युद्ध करते हुए राजा शल्य की मृत्यु हो गई।
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